બાગેવફાबागेवफाBageWafa باغِ وَفا

કરું રબનામથી આરંભ જે મોટો ક્રુપાળુ છે. નથી જેની દયાનો પાર ,જેઅનહદ દયાળુ છે.

Wednesday, February 28, 2007

नीकलुँ_मोहम्मदअली भैडु’वफा’



गजल

जूलमतोँ के ये कफस को तोड. कर नीकलुँ
मिसले सबा मेँ चमन को छोड् कर नीकलुँ

अपनी खुदीका सौदा ये मंजुर नहीँ मुझे
चश्मे हवादीसोँ को भी मेँ फोड कर नीकलुँ

मेरे दरद की केफियत समजे क्या जमाना
अपनी लकीरे हदुद को मोड कर नीकलुँ

बाजार मे बीक जाउँगा है मुझ्को ये पता
मेँ सीपकी ये क़ैदको तोड कर नीकलुँ

बहता हुआ दरिया हुँ मेँ नहीँ रुकता कभी
आबो की बस्तियोँ को मेँ जोड कर नीकलुँ

रुकने का जरा शौक़ नहीँ मुझ्को ए ‘वफा’
अपनी कजा के आयने को खोल कर नीकलुँ

_मोहम्मदअली भैडु’वफा’(27फेब्रु.2007)

karte hain ( 1 2 3 4) wafa ali 27th February 2007 11:22 PMby wafa ali posts155 views10,008

Shayri.com(Apkishayri)(karte hain)Wafa ali પર 10,0000 નો આંક વટાવી ચુકેલી શ્રેણી નીઅંતિમ ગઝલ
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